यूपी/अमेठी-मान्यता है कि कालिकन धाम में दर्शन मात्र से मिलती है मुक्ति
चंदन दुबे की रिपोर्ट
अमेठी जिले के संग्रामपुर स्थित कालिकन धाम में देवी की कृपा पाने के लिए श्रद्धालुओं का मेला लगता है। प्रत्येक चैत्र नवरात्र में विशाल मेला लगता है सिर्फ अमेठी ही नहीं आसपास के जिलों से हजारों की तादाद में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं। पुराणों में भी इसकी महिमा का बखान है।
मान्यता है कि कालिकन देवी भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करती हैं।अमेठी से 12 किलोमीटर दूर स्थिति कालिकन धाम मंदिर है महर्षि च्यवन की तपोस्थली के रूप में पुराणों में जिस स्थल का वर्णन किया गया है।वह स्थल संग्रामपुर का कालिकन क्षेत्र है..ऐसा क्षेत्रवासियों की मान्यता है।पुराण में वर्णित कथा के अनुसार। एक बार अयोध्या नरेश अपनी पुत्री सुकन्या के साथ महर्षि च्यवन की तपोस्थली में वन बिहार करने आए थे।तप में लीन महर्षि की आंखे दीपक के बिंब की तरह चमक रही थीं।जिसे सुकन्या ने हीरा-जवाहरात समझा और एक तिनके से उनकी आंख में छेद कर दिया।जिससे महर्षि की आंखों से रक्त की धार बह निकली।महर्षि को कष्ट होने पर अयोध्या नरेश के साथ आए सैनिक व हाथी-घोड़े बीमार पड़ गए।अयोध्या नरेश ने महर्षि से क्षमा-याचना की और अपनी पुत्री का विवाह महर्षि से कर वापस लौट गए।कुछ समय बाद वहां पहुंचे अश्विनी कुमार ने महर्षि से कहा कि वे उनकी आंखों की ज्योति वापस लौटा देंगे और युवा बना देंगे।बदले में महर्षि उन्हें अमृतपान कराएंगे।अश्वनी कुमार ने शर्त के अनुसार महर्षि की आंखें ठीक कर उन्हें युवा बना दिया।महर्षि के अनुरोध पर अयोध्या नरेश ने सोमयज्ञ कराया।जिसमें सभी देवता और वैद्य अश्विनी कुमार बुलाए गए। जिसमें अश्विनी कुमार को सोमपान कराए जाते देख कुपित इंद्र ने राजा को मारने के लिए वज्र उठा लिया।च्यवन ने स्तंभन मंत्र से इंद्र को जड़वत कर दिया और अमृत की रक्षा के लिए ऋषियों के आह्वान पर कुंड की शिलापट पर मां कालिका प्रगट हुई।आज उसी स्थान पर कालिकन धाम स्थापित है।मंदिर के पुजारी श्री महाराज बताते हैं कि मां की आराधना से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।प्रत्येक दिन भोर में तीन से चार बजे तक व शाम को छह बजे से सात बजे आरती का समय है। जिसमें प्रतिभाग करने से देवी मां भक्तों पर कृपालु होती हैं।