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सुल्तानपुर-(एमएलसी चुनाव)- बड़ी कठिन है डगर पनघट,भाजपा के दो नेता के नामांकन पत्र खरीदने से सियासी गलियारों में मचा भूचाल,राजा या संघ देखे कौन किस पर भारी,देखे पूरी रिपोर्ट।

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विधान परिषद सदस्य के चुनाव की प्रक्रिया प्रारंभ हो गई है , 9 अप्रैल को मतदान व 12 अप्रैल को मतगणना की तिथि तय हो गई है , सुल्तानपुर जनपद में विधान परिषद सदस्य पद के लिये नेताओ ने नामांकन पत्र भी खरीद लिए है , लेकिन सपा से नाता तोड़ भाजपा में शामिल चार बार के विधान परिषद सदस्य शैलेन्द्र प्रताप सिंह व भाजपा से दो बार के विधायक व मंत्री रहे ओम प्रकाश पाण्डेय के नामांकन पत्र खरीदे जाने से जनपद के सियासी गलियारों में हलचल सी मच गई है , ।

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(एमएलसी चुनाव) सुलतानपुर-बड़ी कठिन है डगर पनघट,एक तरफ राजा भइया तो एक तरफ संघ, सियासी गलियारों की हलचल में मची है जंग।

हलचल भी होना लाजमी है , विधान सभा चुनाव के समय सपा से नाता तोड़कर भाजपा में शामिल होने पर लोगो मे यह चर्चाएं आम हो गई थी कि विधान सभा परिषद का चुनाव कौन लड़ेगा , भाजपा व संघ में अपनी पकड़ बनाये विनोद सिंह व शैलेन्द्र प्रताप सिंह पर लोगो की निगाहें थी , लेकिन भाजपा के हाई कमान नेताओ ने विनोद सिंह को सुल्तानपुर विधान सभा से उम्मीदवार के रूप में उतारा तो वह विधान सभा पहुंच गए लेकिन उसके बाद भी शैलेन्द्र प्रताप सिंह का रास्ता साफ होता नही नजर आ रहा है , भाजपा से दो बार विधायक रहे ओम प्रकाश पाण्डेय व भाजपा नेता शैलेन्द्र प्रताप सिंह ने नामांकन पत्र खरीदा तो सियासी गलियारों में भूचाल सा आ गया है , बहरहाल कहा जाता है कि दोनो नेताओ की पकड़ पार्टी में मजबूत बनी है , जहाँ एक तरफ ओम प्रकाश पाण्डेय की पकड़ संघ में मजबूत मानी जाती है , तो वही प्रतापगढ़ कुंडा के विधायक राजा रघुराज प्रताप सिंह से शैलेन्द्र प्रताप सिंह के अच्छे ताल्लुक माने जाते है , कहा यह भी जाता है कि राजा भइया के ही कहने पर शैलेन्द्र प्रताप सिंह ने सपा से त्याग पत्र देकर भाजपा ज्वाइन की थी, अगर यह सही है तो, ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा से राजा भइया शैलेन्द्र प्रताप सिंह को टिकट फाइनल करवाने में कितना कामयाब होते है, बहरहाल

राजा भइया के बारे में कहा जाता है कि यू पी में सत्ता किसी की भी हो लेकिन पकड़ राजा भइया की मजबूत मानी जाती है , भले ही राजा भइया अपनी पार्टी के सिंम्बल से चुनाव लड़े हो लेकिन उनका पूरा समर्थन भाजपा को ही होगा , ऐसे में शैलेन्द्र प्रताप सिंह का क्या होगा , अगर जिस उम्मीद से शैलेन्द्र प्रताप सिंह भाजपा में शामिल हुए थे , वह उम्मीद की किरण न दिखी तो क्या होगा , ऐसे में उस समय देखना दिलचस्प होगा कि , जिनके चेहरे पर शालीनता के भाव नजर आते हो , जुबानों पर मधुर वाणी निकलती हो ऐसे में यह कहा जाता है कि अगर ऐसे दिन आये तो शैलेन्द्र प्रताप सिंह का निर्णय भी विधान परिषद सदस्य के चुनाव के लिये निर्णायक होगा , ।

वही संघ में अपनी पकड़ मजबूत रखने वाले दो बार के विधायक व पूर्व मंत्री ओमप्रकाश पाण्डेय की बात करे तो ओमप्रकाश पांडे ने वर्ष 1991 में सुल्तानपुर की इसौली सीट से पहली बार चुनाव में जीत हासिल की थी। इसके बाद 1993, व 1996में वो चुनाव लड़े तो उन्हें हार का सामना करना पड़ा,लेकिन दोनों ही चुनाव में ओमप्रकाश पांडे ही रनर रहे। 2002 का जब चुनाव आया तो वो इसौली सीट के बजाए सुल्तानपुर सीट से चुनाव लड़े और जीत गए , पार्टी ने उन्हें मंत्री पद देकर नवाजा था , तब से आज तक हुए चार विधान सभा के चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नही दिया ,।

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बहरहाल ओम प्रकाश पाण्डेय पार्टी में हर वक्त सक्रिय बने रहे है , ऐसे में संघ व गायत्री परिवार से सम्बन्ध रखने वाले ओम प्रकाश पाण्डेय को पार्टी कैसे दरकिनार कर पायेगी , पार्टी के लिए भी एक मुसीबत बनी हुई है , देखना 24 मॉर्च को उस समय दिलचसप होगा जब नामंकन पत्र की वापसी की तिथि निर्धारित है , बहरहाल पूर्व मंत्री ओम प्रकाश पाण्डेय व चार बार के विधान परिषद सदस्य रहे शैलेन्द्र प्रताप सिंह दोनों नेताओं की दावेदारी मजबूत मानी जा रही है , देखना तो यह है कि भाजपा पार्टी के खाने में कौन और कैसे फिट हो पायेगा यह तो आने वाला वक्त ही बतायेगा , वही एक शायर ने कहा कहते है सत्त्ता की गलियों से निकलते है सवाल, वही नेता देगे सवालों के जवाब।

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