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अंग्रेज तो गए पर आज भी देश में एक रेल लाइन ऐसी है जिस पर कब्‍जा बरकरार,देखे कहाँ का है मामला, पूरी स्टोरी सिर्फ के.डी न्यूज़ यूपी पर।

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देश को आजाद हुए सात दशक से ज्‍यादा बीत चुके हैं. आजादी के साथ देश से जुड़ी सभी संपत्तियों के साथ रेलवे भी भारत की हो गई. भारतीय रेलवे का साल 1952 में राष्ट्रीयकरण भी हो गया. लेकिन देश में एक रेलवे ट्रैक ऐसा भी है, जो आज भी भारत सरकार के अधीन ना होकर एक ब्रिटिश कंपनी के मातहत है. इस रेलवे ट्रैक के लिए आज भी ब्रिटेन की क्लिक निक्‍सन एंड कंपनी की भारतीय इकाई सेंट्रल प्रोविंसेस रेलवे कंपनी को हर साल करोड़ों रुपये की रॉयल्‍टी का भुगतान करना पड़ता है।

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देश में एक रेल लाइन ऐसी जिस पर अंग्रेजों का आज भी है कब्‍जा,देखे पूरी स्टोरी सिर्फ के.डी न्यूज़ यूपी पर

ब्रिटेन की निजी कंपनी सेंट्रल प्रोविंसेस रेलवे कंपनी को आज भी हर साल करोड़ों रुपये की रॉयल्‍टी का करना पड़ता है भुगतान।

देश में आज भी एक रेल लाइन ऐसी है, जिस पर अंग्रेजों का कब्‍जा है. इसके लिए ब्रिटेन की एक निजी कंपनी सेंट्रल प्रोविंसेस रेलवे कंपनी को आज भी हर साल करोड़ों रुपये की रॉयल्‍टी का भुगतान करना पड़ता है. इसकी मरम्‍मत और संरक्षण की जिम्‍मेदारी भी ब्रिटिश कंपनी की है, लेकिन ये कंपनी रॉयल्‍टी लेने के बाद भी इस ट्रैक के रखरखाव पर कोई ध्‍यान नहीं देती है. इस वजह से ये ट्रैक खस्‍ताहाल हो चुका है.

ट्रैक को खरीदने की कई बार कोशिश, लेकिन नतीजा सिफर

भारतीय रेलवे ने महाराष्‍ट्र के यवतमाल से अचलपुर के बीच 190 किमी लंबे इस ट्रैक को खरीदने की कई बार कोशिश की, लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला. हम बात कर रहे हैं देश की इकलौती निजी रेलवे लाइन की, जो अपनी ट्रेन शकुंतला एक्‍सप्रेस के नाम से ज्‍यादा पहचानी जाती है. शकुंतला रेलवे ट्रैक पर भाप के इंजन से चलने वाली शकुंतला पैसेंजर स्‍थानीय लोगों के लिए जीवनरेखा से कम नहीं थी।

आज भी अंग्रेजों के जमाने के सिग्‍नल और दूसरे हाथ से चलने वाले लगे है उपकरण।

ट्रैक पर आज भी अंग्रेजों के जमाने के सिग्‍नल और दूसरे हाथ से चलने वाले उपकरण ही मिलेंगे. इस ट्रेन से रोजना एक हजार से ज्‍यादा लोग अपना सफर पूरा करते थे. अंग्रेजों ने शकुंतला रेलवे ट्रैक को अमरावती से कपास ढोकर मुंबई बंदरगाह तक पहुंचाने के लिए बनाया था. सेंट्रल प्रोविंसेस रेलवे कंपनी ने 1903 में कपास को यवतमाल से मुंबई तक ले जाने के लिए शकुंतला रेलवे ट्रैक बिछाने का काम शुरू कर दिया. अमरावती में हमेशा से ही कपास की पैदावार खूब होती आई है।

शकुंतला एक्‍सप्रेस का परिचालन बंद होने के पर स्‍थानीय लोग लगातार इसको फिर चलाने की कर रहे हैं मांग।

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शकुंतला रेलवे ट्रैक पर 7 डिब्‍बे लेकर चलने वाले जेडीएम सीरीज के डीजल लोको इंजन की गतिसीमा 20 किमी प्रति घंटा रखी गई थी. सेंट्रल रेलवे के 150 कर्मचारी इस रूट पर ट्रेन को चलाने के लिए काम में लगे रहते थे. शकुंतला एक्‍सप्रेस का परिचालन बंद होने के बाद से ही स्‍थानीय लोग लगातार इसको फिर चलाने की मांग कर रहे हैं. भारत सरकार ने कई बार इसे खरीदने की कोशिश की, लेकिन कोई फायदा नहीं निकला।

शकुंतला एक्‍सप्रेस 190 किमी के इस सफर को 6 से 7 घंटे के भीतर करती है तय।

शकुंतला रेलवे ट्रैक पर अचलपुर से यवतमाल के बीच 17 स्‍टेशन पड़ते हैं. पांच डिब्‍बे की ये ट्रेन 70 साल तक भाप के इंजन से चलती रही. इसके बाद 1994 में भाप इंजन को डीजल इंजन से बदल दिया गया. इसी के साथ इसकी बोगियों की संख्‍या भी बढ़ाकर 7 कर दी गई. शकुंतला एक्‍सप्रेस 190 किमी के इस सफर 6 से 7 घंटे के भीतर तय कर लेती थी. हालांकि, फिलहाल ये ट्रेन बंद है।

कंपनी के रायल्टी लेने के बाद भी कभी इस ट्रैक की नहीं कराई मरम्‍मत, ट्रैक जब खस्‍ताहाल, परिचालन बंद करने का फैसला

नैरोगेज रेलवे ट्रैक बिछाने का काम 13 साल की कड़ी मेहनत के बाद 1916 में पूरा हुआ. भारतीय रेलवे ने आजादी के समय सीपीआरसी को हर रॉयल्‍टी देने का करार किया. शकुंतला रेलवे ट्रैक के लिए किए गए करार के मुताबिक भारत सरकार हर साल 1.20 करोड़ रुपये सीपीआरसी को रॉयल्‍टी दी जाती है. इसके बावजूद कंपनी ने कभी इस ट्रैक की कभी मरम्‍मत नहीं कराई. ये रेलवे ट्रैक जब खस्‍ताहाल हो गया तो शकुंतला एक्‍सप्रेस का परिचालन बंद करने का फैसला लेना पड़ा।

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