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आखिरकार देश में चीते लाने का 70 साल का इंतजार खत्म, चीते देश की धरती की तासीर को समझने की कर रहे कोशिश,देखे वीडियो रिपोर्ट।

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जानवरों की भी अपनी अलग एक दुनिया होती है. उनकी दुनिया उनका जंगल होता है जब से उनकी दुनिया उजाड़नी शुरू कर हुई उनके लिए छिपने की जगह नहीं मिला तो ये भी शहरों की तरफ बढ़े चले। हम बात कर रहे हैं नामीबिया से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में लाये गए आठ चीतों का।जिनको 16 घंटे के हवाई सफर के बाद जंगल में छोड़ दिया गया।

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आखिरकार देश में चीते लाने का 70 साल का इंतजार खत्म, चीते देश की धरती की तासीर को समझने की कर रहे कोशिश, देखिए रिपोर्ट।

पल भर में फर्राटा भरने वाला आज एक-एक कदम सोच सोचकर बढ़ा रहा था

वो सहमा हुआ था, वो डरा हुआ था, उसके पैर कांप रहे थे. निगाहें भी टिक नहीं रहीं थीं, पल भर में फर्राटा भरने वाला आज एक-एक कदम सोच सोचकर बढ़ा रहा था. पिंजरे से आजादी तो मिली मगर वो समझ नहीं आ रहा था कि जाएं तो जाएं कहा. पूरा मंजर बदला हुआ था. न वो ज़मी थी न वो आसमां. 16 घंटे बाद उसके सामने से पिंजरा खुल रहा था. जैसे ही वो पिंजरा खुला वो एकदम से बाहर भागा. मगर कुछ ही कदम पर वो रुक गया. रुकने के बाद वो चारों ओर देख रहा था. एक हैरान और परेशान चेहरा लिए आगे की ओर बढ़ा।

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फिल्म बाजीराव मस्तानी का एक मशहूर डायलॉग है. चीते की चाल, बाज की नजर और बाजीराव की तलवार पर संदेह नहीं करते, कभी भी मात दे सकती है

शायद उसकी उम्र चार से छह साल के बीच थी मगर उसकी जिंदगी में पहली बार ये घटना घट रही थी. फिल्म बाजीराव मस्तानी का एक मशहूर डायलॉग है. चीते की चाल, बाज की नजर और बाजीराव की तलवार पर संदेह नहीं करते, कभी भी मात दे सकती है. चीते की चाल और मंद पड़ी थी. राजधानी और शताब्दी की रफ्तार से दौड़ने वाला चीता आज पिंजरे से निकलने के बाद असहज दिख रहा है. उसके पैर कांप रहे थे और निगाहें चारों ओर अपनों के तलाश में थी. अभी तक उसके साथ पिंजरे में कैद दूसरा साथी तो पिंजरे से निकला ही नहीं. शायद उसको लगा होगा कि अब ये पिंजरा ही उसका घर है. क्योंकि बाहर दिख रही दुनिया भी पूरी तरह से बदली हुई थी।

यूं तो नामीबिया का मौसम और यहां के मौसम में बहुत बड़ा फर्क नहीं है लेकिन चीतों को भारत के हिसाब से ढलना पड़ेगा।

आये चीतों के लिए 16 घंटे में सबकुछ बदल गया था चार से छह साल की उम्र के इन चीतों को भारत के हिसाब से ढलना पड़ेगा. यूं तो नामीबिया का मौसम और यहां के मौसम में बहुत बड़ा फर्क नहीं है मगर बाकी कुछ बदल गया था. अभी तक जिन जंगलों में इनका आशियाना था उससे ये चीते परिचित हो चुके थे. जंगल के रास्तों हों या फिर शिकार की तलाश सबकुछ इन चीतों को पता चल गया था. अब भारत पहुंचने के बाद गिनती वापस शुरू से शुरू करनी होगी.

नामीबिया से मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में आठ चीते लाए गए. 16 घंटे के हवाई सफर के बाद उनको जंगल में छोड़ दिया गया. जैसी ही पीएम मोदी ने बॉक्स का लीवर घुमाया और धीमे-धीमे वो बक्सा खुला तो चीतों के लिए सबकुछ बदल गया था. न तो उसका इलाका था, न वो हवा थी. जहां उसके कदम आगे बढ़े तो उस जमीन की तासीर भी बदली हुई थी. हकीकत में पूरे देश के लिए गर्व की बात है कि सात दशक बाद देश में फिर से चीते आए हैं. मगर चीते की असहजता साफ नजर आ रही थी. वो एक दम चौंका हुआ था.

जानवरों की भी अपनी अलग एक दुनिया होती है. उनकी दुनिया उनका जंगल होता है. लोगों ने कंक्रीट जंगल बनाएं ओर उनकी दुनिया उजाड़नी शुरू कर दी. उनके लिए छिपने का जब कोई जगह नहीं मिला तो ये भी शहरों की तरफ बढ़े. शहरों में बढ़े तो इंसानों ने डरकर इनको मारा. बहुत सारे वन्यजीव लुप्त होते गए. अब सरकार का प्रयास है कि चीतों को वापस से बसाया जाए. इसके लिए नामीबिया से आठ चीते मंगवाए गए. अभी भी इन चीतों के लिए अगले छह महीने बहुत चुनौतीपूर्ण हैं. इनके लिए सबकुछ नया है. जानवरों का एक परिवार होता है. वो परिवार ये छोड़कर आए हैं. अपने दोस्तों को छोड़कर आए हैं. कुछ वक्त बाद ये चीते जब इस क्षेत्र को पहचान जाएंगे, यहां के हालात से वाकिफ हो जाएंगे तो शायद स्थितियां इनके अनुरूप हो जाएंगी.

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