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आलू की खेती में उत्तर प्रदेश का देश में हैं प्रथम स्थान,आलू की उन्नत खेती के लिए प्रो. रवि प्रकश ने दी जानकारी।

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आलू की उन्नत खेतीःप्रो. रवि प्रकश।

आलू की खेती में उत्तर प्रदेश का देश में प्रथम स्थान है। आलू का प्रयोग मुख्य रूप से सब्जियों, चिप्स, पापड़,चाट,पकौड़ी, ,समोसा,डोसा ,चोखा आदि के रुप में किया जाता है। पूर्वांचल में ब्रत, त्योहार में फलाहार में भी काम आता है। प्रो. रवि प्रकाश मौर्य निदेशक ,प्रसार्ड ट्रस्ट मल्हनी, भाटपार रानी देवरिया ने बताया कि आलू रबी के में बोयी जाने वाली फसल है। इसकी सफल खेती के लिए तकनीकी जानकारी आवश्यक है। खेत की तैयारी-इसके लिए बर्षात कम होने के साथ समय मिलते ही खेत की जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से तथा 2-3 जुताइयाँ देशी हल, कल्टीवेटर/हैरो से करके पाटा देकर मिट्टी भुरभुरी बना लेनी चाहिए । प्रमुख प्रजातियां आलू की प्रमुख प्रजातियाँ कुफरी चन्द्र मुखी,कुफरी अशोका, 70-80 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है।जिसकी उपज क्षमता 80-100 कुन्तल प्रति एकड़ है , कुफरी बहार, कुफरी लालिमा, 90-110 दिन ,उपज क्षमता 100-120 कु.प्रति एकड़,कुफरी बादशाह, कुफरी सिन्दूरी, कुफरी आनंद, कुफरी सतलुज 110-120 दिन,उपज क्षमता ,120-160 कुन्तल प्रति एकड़, प्रसंस्करण योग्य किस्में कुफरी चिप्सोना-1, कुफरी चिप्सोना-2 अवधि 110 दिन उपज 140-160 कु.प्रति एकड़ है। कंद बीज की मात्रा एवं बीजोपचार 35-40 ग्राम वजन या 3.5 -4.00 सेमी आकार वाले 12-14 कु.बीज प्रति एकड़ की दर से प्रयोग करना चाहिए।बीज जनित रोगों से सुरक्षा के लिए उपचारित एवं प्रमाणित बीज ही बोना चाहिए। बुआई का समय– मुख्य फसल की बुआई का उचित समय माह अक्टूबर का दूसरा पखवारा है। खाद एवं उर्वरक– मृदा परीक्षण के आधार पर खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए, यदि मिट्टी परीक्षण न हो सके तो 60 कुन्टल गोबर की सड़ी खाद का प्रयोग प्रति एकड़ में करें। 80 किग्रा. युरिया ,200 किग्रा सिंगल सुपरफास्फेट एवं 66किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश ,जिंक सल्फेट 10 किग्रा, फेरस सल्फेट 20 किग्रा,प्रति एकड़ की दर से अंतिम जुताई के समय खेत मे मिला दे। बुआई के 30 से 35 दिन के बीच सिचाई के बाद टाप ड्रेसिंग के रूप में 80किग्रा. यूरिया मिट्टी चढा़ने के समय प्रति एकड़ में देना चाहिए। बुआई की विधि पंक्ति से पंक्ति की दूरी 60 से.मी. कंद से कंद की दूरी 20 सेमी० 8 से 10 सेमी० की गहराई पर करनी चाहिए। सिंचाई-*बुआई के 8-10 दिन बाद अंकुरण से पूर्व पहली हल्की सिंचाई करें।सिंचाई करते समय यह ध्यान रखे कि आलू की गुले पानी से दो तिहाई से ज्यादा न डूबे। उसके बाद आवश्यकतानुसार 15 दिनों के अन्तराल पर करें। अंतिम सिंचाई खुदाई के लगभग 10 दिन पहले बन्द कर दें। *खरपतवार नियंत्रण एवं मिट्टी चढ़ाना* आलू बुआई के 20-25 दिन बाद पौधे 8-10 से.मी. ऊचाई के हो जाते है। खरपतवार निकाल कर यूरिया गुलों में डालकर मिट्टी चढ़ा दे। कीट एवं रोग प्रबंधन नाशीजीवों का सही पहचान कर उचित प्रबंधन करना चाहिए।
आलू की खुदाई– अगेती फसल से अच्छा मूल्य प्राप्त करने के लिए बुआई के 60-70 दिनों बाद खुदाई कर बिक्री कर सकते है।फसल पकने पर 20-30 डिग्री सेन्टीग्रेट ताप आने से पूर्व ही खुदाई कर लेनी चाहिए। भण्डारण आवश्यकतानुसार कोल्ड स्टोरेज में भण्डारण कर सकते है।

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