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सुलतानपुर-बाल कल्याण समिति के प्रयास से छ माह बाद परिजनों से मुलाक़ात हुई बेटी की, लौटी खुशियां।

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छ माह बाद आईं बेटियां तो लौट आई खुशियां

जेबकटी तो कागज के अभाव में पिता को मानव तस्कर मान बैठी रही रेलवे पुलिस

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बाल कल्याण समिति के प्रयास से छ माह बाद परिजनों से हुई मुलाक़ात

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सुलतानपुर। परिजन के साथ बंगाल गई दो बेटियों को छोड़ माँ फरार हो गई, पिता उन्हें लेकर घर चला तो रेलवे स्टेशन पर जेब कट गई, परेशान हाल परिवार को देख जीआरपी ने जाँच की तो कोई पहचान पत्र नहीं मिला पुलिस वालों ने बच्चियों को बालिका गृह भेज पिता को पहचान सिद्ध करने को छोड़ दिया। कागजो की खाना पूर्ति में छ माह लग़ गये तब तक दोनों बच्चियां निरापराध बाल गृह में निरुद्ध रही. पुष्टि होने पर शुक्रवार को प्रोबशन अधिकारी व बाल कल्याण समिति के सदस्यों की मौजूदगी में बच्चियों को परिजन को सौंपा गया तो खुशियाँ लौट आई।

ये कहानी कुछ फिल्मी जरूर पर सच्ची है। लम्भुवा थाने के भदइयाँ निवासी हिमांशु छ महीने पहिले पत्नी व बेटियां श्रेया और आराध्या के साथ कोलकाता गये थे. उसका कहना है कि पत्नी वहां गुम हो गई। वे वापसी के लिए हावड़ा रेलवे स्टेशन आये थे वही उनकी जेब कट गई. हो हल्ला मचा तो रेलवे पुलिस आ वे मदद की बजाय इन्क्वारी करने लगे उसकी बातों की पुष्टि के लिए पहचान पत्र माँगा. लेकिन जेब कतरे रूपये मोबाइल के साथ बैग में रखा कागजात भी लें गये थे. कोई प्रमाण न होने पर पुलिस वालों ने बच्चा बेचने वाला मान लिया और बच्चियों को बालिका गृह भेजकर प्रमाण लाने के लिए घर भेज दिया. वे प्रधान सेक्रेटरी के प्रमाण पत्र लेकर गये लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं हुआ. इसी बीच प्रकरण बाल कल्याण समिति को पहुंचा तो उन्होने समाज सेविका अर्चना पाल से सामाजिक जाँच कराई। प्रोबशन अधिकारी के माध्यम से पुष्टि कराई गई तब बच्चियों के आने की आस जगी। शुक्रवार को बंगाल चाइल्ड लाइन की टीम बच्चियों को लेकर यहाँ पहुंची तो प्रोबशन अधिकारी बीपी वर्मा, बाल कल्याण समिति की सदस्य मजिस्ट्रेट सरिता यादव, ममता मिश्र व शिवमूर्ति पांडे की मौजदगी में लिखा पढ़ी कर पिता व बुआ के संरक्षण में दिया गया। छ माह बाद की इस मुलाकत में श्रेया आराध्या तो खुश ही थे परिजन भी सबका धन्यवाद देते रहें।

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