हाथरस में बरावफात जुलूस के दौरान तिरंगे का अपमान?, उठा बड़ा सवाल,अशोक चक्र |

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तिरंगे का अपमान: हाथरस में बरावफात जुलूस से उठा बड़ा सवाल

“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।”
—रामप्रसाद बिस्मिल

खबर की शरुवात—–

हाथरस: उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में बरावफात के जुलूस-ए-मोहम्मदी के दौरान राष्ट्रीय ध्वज के अपमान का गंभीर मामला सामने आया है। सोशल मीडिया पर वायरल एक वीडियो में दिखा कि कुछ युवकों ने तिरंगे से अशोक चक्र हटाकर उसकी जगह “या रसूल अल्लाह” लिख दिया और इस झंडे को जुलूस में लहराया।

“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है,
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।” रामप्रसाद बिस्मिल का भारत को आजाद कराने के लिए जोशभर देने वाला यह वीर रस का गीत आज इस दुर्दशा को देख कर आंसू बहा रहा होगा।क्या इसी भारत देश के लिए महापुरषो ने अपनी वतन पर कुर्बानियां दी। आइये खबर पर चलते हैं।

वीडियो वायरल होने के बाद पुलिस ने तत्काल कार्रवाई करते हुए मोहल्ला नाई का नगला के रहने वाले दो युवकों—इरफान पुत्र गुड्डू और आमिर पुत्र इकबाल—को गिरफ्तार कर लिया। आरोपियों पर राष्ट्रीय गौरव अपमान निवारण अधिनियम 1971 की धारा 2 के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है।

किसी को क्या लगता है कि यह तिरंगा केवल कपड़े का टुकड़ा हैं नहीं,यह तिरंगा केवल कपड़े का टुकड़ा नही बल्कि भारत की आन-बान-शान है।
अशोक चक्र केवल 24 तीलियों वाला डिज़ाइन नहीं, बल्कि न्याय, धर्म और कर्तव्य का प्रतीक है।
इसे हटाकर नारे लिखना न केवल अपराध है, बल्कि यह सीधा-सीधा राष्ट्र के गौरव पर चोट है।

सवाल तो उठेंगे।

  1. क्या ऐसा करना सही है?
    तिरंगा किसी भी धर्म, जाति या समुदाय का नहीं बल्कि पूरे भारत का प्रतीक है। उसके साथ किसी भी तरह की छेड़छाड़ अस्वीकार्य है।
  2. क्या अशोक चक्र का अपमान होना चाहिए?
    अशोक चक्र केवल 24 तीलियों वाला डिजाइन नहीं, बल्कि धर्मचक्र, कर्तव्य और न्याय का प्रतीक है। इसे हटाकर धार्मिक नारे लिखना राष्ट्र और संविधान दोनों का अपमान है।
  3. जुलूस के आयोजकों की जिम्मेदारी क्या है?
    जब इतनी बड़ी संख्या में लोग किसी भी जुलूस या शोभायात्रा में शामिल होते हैं, तो आयोजकों पर यह जिम्मेदारी होती है कि राष्ट्रध्वज, राष्ट्रीय प्रतीक या कानून के विरुद्ध कोई गतिविधि न हो। चाहे किसी भी धर्म का जुलूस हो, जवाबदेही तो तय होनी चाहिए।

क्या अशोक चक्र मिटाकर धार्मिक नारा लिखना देशप्रेम है या देशद्रोह की तरफ कदम?

  1. जुलूस के कर्ताधर्ता कहाँ थे जब राष्ट्रीय ध्वज से खिलवाड़ हो रहा था?
  2. क्या किसी भी धर्म के पर्व में राष्ट्रध्वज को इस तरह अपमानित करने की इजाज़त दी जा सकती है?

इसमे समाज के लोगो को समझना चाहिए

धर्म और राष्ट्रध्वज अलग-अलग हैं। धार्मिक आस्था का सम्मान होना चाहिए लेकिन राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान किसी भी हाल में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता।

युवाओं को समझना होगा कि तिरंगा हमारी पहचान है, इसका अपमान न केवल अपराध है बल्कि देश की एकता पर चोट है।

जिम्मेदारी तय करनी होगी, ताकि किसी भी भविष्य के जुलूस में ऐसी घटना दोहराई न जाए।

धर्म अपनी जगह है, तिरंगा अपनी। दोनों को मिलाना केवल अराजकता और अपमान की वजह बनता है।

राष्ट्रध्वज पर किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ अपराध है। चाहे वह किसी भी धर्म, समुदाय या जुलूस से जुड़ा क्यों न हो।

निष्कर्ष

भारत विविधताओं का देश है। यहां हर धर्म को अपनी आस्था के अनुसार पर्व मनाने की स्वतंत्रता है। लेकिन यह स्वतंत्रता कभी भी राष्ट्रध्वज और राष्ट्रीय प्रतीकों के अपमान की इजाज़त नहीं देती।
कानून ने इस मामले में कार्रवाई शुरू कर दी है, लेकिन असल सबक समाज को लेना होगा—धर्म की आस्था निजी हो सकती है, पर तिरंगा हम सबकी सामूहिक अस्मिता है। इसका सम्मान करना हर नागरिक का कर्तव्य है।भारत की ताक़त उसकी विविधता है, लेकिन यही ताक़त तब कमजोर हो जाती है जब कोई धार्मिक आस्था के नाम पर राष्ट्रीय प्रतीकों को लांछित करता है।
आज हाथरस की इस घटना ने हमें चेताया है—।

देश के झंडे के आगे कोई धर्म, कोई समुदाय, कोई आस्था बड़ी नहीं।
तिरंगे का सम्मान करना सिर्फ कानून नहीं, बल्कि हर नागरिक का पहला कर्तव्य है।

इस घटना ने फिर याद दिलाया कि
“कोई धर्म, कोई आस्था, कोई भीड़… तिरंगे से ऊपर नहीं हो सकती।”
यह केवल कानून की नहीं, बल्कि हर भारतीय की जिम्मेदारी है कि तिरंगे का अपमान न होने पाए।

“तिरंगा है तो हिंदुस्तान है,
तिरंगे का मान है तो हिन्दुस्तानी का सम्मान है।”

आस्था निजी है, तिरंगा राष्ट्रीय है। राष्ट्रीय प्रतीक को किसी भी कीमत पर बंधक नहीं बनाया जा सकता। बहुत बहुत धन्यबाद दर्शको जयहिंद।

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