“जब भगवा पर बरसी अभद्रता: शिक्षक नेता की टिप्पणी पर विधायक का करारा जवाब”

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“जब भगवा पर बरसी अभद्रता: शिक्षक नेता की टिप्पणी पर विधायक राजेश गौतम का करारा जवाब”


सुल्तानपुर संवाददाता।
समरसता मंच के एक कार्यक्रम में सुल्तानपुर में तब माहौल गरम हो गया जब शिक्षक नेता श्यामलाल निषाद ने मंच से भगवा वस्त्र पहनने वालों पर आपत्तिजनक टिप्पणी कर दी। उन्होंने कथित रूप से “हरामी” जैसे शब्द का प्रयोग कर न केवल सभ्य संवाद की मर्यादा लांघी, बल्कि सनातन संस्कृति के सम्मान पर भी सवाल खड़ा कर दिया।
वायरल वीडियो के माध्यम से यह मामला जैसे ही सार्वजनिक हुआ, समाज के विभिन्न वर्गों में आक्रोश फैल गया।


🟧 विधायक राजेश गौतम की सख्त आपत्ति

कार्यक्रम में मौजूद कादीपुर विधायक राजेश गौतम ने मंच पर ही इस टिप्पणी का विरोध करते हुए कहा कि — “भगवा वस्त्र केवल रंग नहीं, वह आस्था, त्याग और तप का प्रतीक है। उस पर अपमानजनक शब्द कहना किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता नहीं, बल्कि सामाजिक असंवेदनशीलता है।”
विधायक की यह प्रतिक्रिया दर्शकों के बीच तालियों की गड़गड़ाहट के साथ गूंजी और उन्होंने स्पष्ट किया कि विचारों का मतभेद होना स्वाभाविक है, परंतु “विचारों का विरोध कभी भी अपमान में नहीं बदलना चाहिए।”


⚖️ विवाद का सार

समरसता मंच पर आयोजित इस कार्यक्रम में शिक्षक नेता श्यामलाल निषाद ने कथित रूप से मनुवादी सोच पर प्रहार करते हुए ऐसे शब्दों का प्रयोग किया, जो धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले थे।
यह पहली बार नहीं है जब श्यामलाल निषाद पर मंचों से विवादित बयान देने के आरोप लगे हों। उनके पूर्व के वक्तव्यों में भी समाज के एक वर्ग को कटघरे में खड़ा करने की प्रवृत्ति झलकती रही है।


🕉️ समीक्षा: अभिव्यक्ति की आज़ादी या अपमान की प्रवृत्ति?

भारत में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है, परंतु जब यह स्वतंत्रता किसी धर्म, परंपरा या समुदाय की आस्था को ठेस पहुंचाने लगे, तो यह स्वतंत्रता नहीं बल्कि अराजकता बन जाती है।
शिक्षक समाज का वह वर्ग है जिससे विवेक, संयम और संतुलित दृष्टिकोण की अपेक्षा की जाती है। यदि वही वर्ग कटाक्ष और अपमान का मंच तैयार करने लगे, तो यह सामाजिक सौहार्द के लिए चिंताजनक संकेत है।


🔸 समरसता की भावना को समझना होगा

“समरसता मंच” का उद्देश्य समाज में एकता और समानता की भावना को प्रोत्साहित करना है। ऐसे मंचों पर किसी विशेष विचारधारा या वस्त्र—जो धार्मिक प्रतीक हों—पर टिप्पणी करना उस उद्देश्य का ही उपहास है।
विधायक राजेश गौतम का हस्तक्षेप इस बात का संकेत है कि समाज में अब वैचारिक असहिष्णुता को सहन नहीं किया जाएगा।


🔹 निष्कर्ष

यह विवाद केवल एक शब्द का नहीं, बल्कि संवेदनशीलता बनाम सनसनी का प्रतीक है।
एक शिक्षक का शब्द समाज को दिशा दे सकता है या भटका भी सकता है। श्यामलाल निषाद की टिप्पणी ने यह सोचने पर विवश कर दिया है कि कहीं अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर हम मर्यादा की सीमाएं तो नहीं तोड़ रहे हैं?
वहीं विधायक राजेश गौतम का स्पष्ट रुख लोकतांत्रिक मर्यादा और धार्मिक सम्मान दोनों की रक्षा करने वाला माना जा रहा है।


संपादकीय दृष्टिकोण:

“विचार भले अलग हों, पर मर्यादा एक ही रहनी चाहिए — वह है सभ्यता की।
जो भगवा का सम्मान नहीं समझता, वह भारत की आत्मा को नहीं समझता।”

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