भारत में इंश्योरेंस सेक्टर में बड़ा बदलाव: FDI की मंजूरी, मिलेगा फायदा
📰 इंश्योरेंस सेक्टर अपडेट – हाल की प्रमुख खबरें
- FDI सीमा हुई 100% तक बढ़ी
वित्त बजट 2025-26 के दौरान सरकार ने घोषणा की कि इंश्योरेंस सेक्टर में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) की सीमा 74 % से बढ़ाकर 100 % कर दी जाएगी। इस शर्त के साथ कि जो प्रीमियम आएगा, वह भारत में ही निवेश किया जाए।
यह कदम बाज़ार प्रतिस्पर्धा को बढ़ाएगा, विदेशी निवेशकों को आकर्षित करेगा, और उपभोक्ताओं को बेहतर उत्पाद एवं सेवाएँ मिलेंगी।
- प्रिमियम ग्रोथ में मंदी / परिवर्तन
FY25 में नॉन-लाइफ (General + Health) इंश्योरेंस प्रीमियम आय में वृद्धि हुई है, मगर गति पहले जैसी नहीं रही। सीमा एवं उच्च प्रीमियम के कारण कुछ हिस्सों में उपभोक्ता दबाव महसूस हो रहा है।
स्वास्थ्य (Health) इंश्योरेंस सेगमेंट की वृद्धि दर FY25 में लगभग 8.98 % रही, जबकि एक वर्ष पहले यह >20 % थी।
कार और मोटर इंश्योरेंस, फायर इंश्योरेंस जैसे खंडों में कुछ बढ़त हो रही है, लेकिन मोटर OD प्रीमियम्स की वृद्धि पूर्व की तुलना में धीमी है।
- नियम-नीति और ग्राहक-हित विषयक बदलाव
AHPI (Association of Healthcare Providers India) और Star Health ने मिलकर एक समझौता किया है जिसमें पुराने अस्पतालों के साथ “कैशलेस सेवा” पुनः शुरू की जाएगी, यह सेवा 10 अक्टूबर 2025 से लागू होगी।
अस्पताल-बीमा कंपनियों के बीच अस्पतालों द्वारा टैरिफ (चिकित्सा खर्चों की दरें) में समायोजन की मांग बढ़ी हुई है। खर्च बढ़े हैं (विशेष रूप से ओंकोलॉजी, रेडियोलॉजी आदि में), जिससे पुरानी दरों पर काम करना मुश्किल हो गया है।
- भविष्य की संभावनाएँ और अनुमान
रिपोर्टों के अनुसार, भारत का इंश्योरेंस सेक्टर 2030 तक लगभग ₹25 लाख करोड़ तक का ग्रॉस अंडररिटन प्रीमियम (GWP) छू सकता है। वर्तमान में यह लगभग ₹11.2 लाख करोड़ है।
इंश्योरेंस का पेनिट्रेशन (दावा-प्राप्ति और कवर की पहुँच) बढ़ाने की ज़रूरत है। वर्तमान में भारत में यह लगभग 3.7 % है और अनुमान है कि यह 5 % तक पहुँच सकता है।
✍️ विश्लेषण: क्या बदलाव मायने रखते हैं?
उपभोक्ताओं को सस्ते विकल्प मिलेंगे: FDI सीमा पूरी तरह खुलने से विदेशी कंपनियाँ जोड़ सकती हैं अपने उत्पाद पोर्टफोलियो, जिससे उत्पादों की किस्म बढ़ेगी और प्रतिस्पर्धा बढ़ने से कीमतों पर दबाव बनेगा।
प्राप्त-सेवा (Cashless) व्यवस्था अधिक सुगम हो जाएगी: अस्पतालों और बीमा कंपनियों के बीच टैरिफ विवाद हल होने से मरीजों को अस्पताल में भर्ती होने पर भुगतान की सुविधा मिलना आसान होगा।
बढ़ती मेडिकल कीमतें (मेडिकल इन्फ्लेशन) व इलाज-खर्च के बढ़ने से प्रीमियम में सुधार की ज़रूरत: मौजूदा प्रीमियम दरें अक्सर चिकित्सा खर्चों की वृद्धि के अनुपात में नहीं बढ़ीं हैं, इसलिए बीमा कंपनियों को दरों का पुनर्मूल्यांकन करना होगा।
नियम व ज़िम्मेदारियाँ बढ़ी होंगी: IRDAI द्वारा किए गए नियम-नीति सुधारों जैसे कि विदेशी निवेश, कंपनी संचालन, ग्राहक सुरक्षा ये आदि माँगें बढ़ाएँगी कि बीमा कंपनियाँ अधिक पारदर्शी और उत्तरदायी हों।
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भारत में निवेश की रफ्तार तेज, 81 अरब डॉलर FDI प्रवाह दर्ज
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