सुलतानपुर: कौशल विकास मिशन के करोड़ो प्रोजेक्ट का उद्घाटन,लगा सवालिया निशान

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कौशल विकास मिशन का उद्देश्य पर बना सवाल,अब हूनर नही बन गया कमाई का जरिया।

क्षेत्रीय विधायक को नही लगने दी इसकी हवा। पार किया बड़ा प्रोजेक्ट।

🔥सुल्तानपुर एक्सक्लूसिव रिपोर्ट🔥
“जब सैंया भये कोतवाल, तो डर काहेका!” — सुल्तानपुर में ड्रीम प्रोजेक्ट बन गया ‘कमाई का प्रोजेक्ट’!


✍️सुल्तानपुर ब्यूरो रिपोर्ट -KD NEWS DIJITAL

सुल्तानपुर।
सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट “कौशल विकास मिशन” का असली उद्देश्य था — “हर हाथ को हुनर, हर युवा को रोजगार”। लेकिन जिले में इस योजना का हाल कुछ यूं है कि अब यह “हुनर” नहीं, “कमाई” का जरिया बन चुकी है।

जब सैंया भये कोतवाल, तो डर काहेका” — यह कहावत आज सुल्तानपुर में कौशल विकास मिशन पर सटीक बैठ रही है। सरकार की मंशा थी कि युवाओं को विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षित कर रोजगार से जोड़ा जाए, जिसके लिए एक प्रशिक्षु पर ₹25,000 तक की राशि सरकार की ओर से ट्रेनिंग पार्टनर्स को दी जाती है। लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और बयां कर रही है।


💰 कौशल विकास का काला खेल

सूत्रों के मुताबिक अंदरखाने में जीजा साले के रिश्ते का खेल चल रहा है, फिलहाल इस खबर से इसका कोई वास्ता ना जोड़ा जाय, जिले में प्रशिक्षण के नाम पर करोड़ों रुपए का सरकारी बजट सिर्फ कागजों पर खर्च दिखाया जा रहा है।

गौरतलब हो कि नर्सिंग और हेल्थ केयर ट्रेड के नाम पर “मेडिकेटिया फार्मासिटिकल प्राइवेट लिमिटेड” और “आस्था फाउंडेशन” जैसी संस्थाओं को प्रशिक्षण की जिम्मेदारी दी गई है।
मेडिकेटिया फार्मासिटिकल प्राइवेट लिमिटेड द्वारा अनन्या भवन, अमहट में 250 युवाओं को हेल्थ केयर ट्रेड में प्रशिक्षण देने का प्रस्ताव स्वीकृत किया गया।

इस योजना के ट्रेनिंग पार्टनर (टी.पी.) बी.के. वर्मा बताए जाते हैं, जिन्हें कौशल विकास मिशन की ओर से 62 लाख रुपये का प्रोजेक्ट दिया गया है। चार महीने में प्रशिक्षण पूरा कर प्लेसमेंट देने का लक्ष्य तय किया गया है।


⚖️ नियमों की उड़ाई जा रही धज्जियाँ

कौशल विकास मिशन के निदेशक पुलकित खरे ने सभी जिलाधिकारियों को साफ निर्देश दिया था कि—

“किसी भी प्रशिक्षण केंद्र के शुभारंभ से पहले स्थानीय विधायक को सूचित कर उनके करकमलों से उद्घाटन अनिवार्य रूप से कराया जाए।”

लेकिन सुल्तानपुर में इस निर्देश को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया गया।
सूत्रों का कहना है कि टी.पी. बी.के. वर्मा ने अपने “चहेते विधायक” को बुलाकर उद्घाटन करा लिया — जबकि यह जिम्मेदारी क्षेत्रीय विधायक की थी।

यह सवाल अब जिले में चर्चा का विषय बन गया है कि —

“क्या सरकारी योजनाओं में अब राजनीतिक समीकरण नियमों पर भारी पड़ने लगे हैं?”


📉 योजना का लक्ष्य या दिखावा?

केंद्र का दावा है कि युवाओं को 100% प्रशिक्षण के बाद प्लेसमेंट दिया जाएगा, लेकिन अब तक जिले में न तो प्रभावी प्रशिक्षण दिखा और न ही किसी युवाओं को ठोस रोजगार का प्रमाण।
कौशल विकास मिशन का वह “ड्रीम प्रोजेक्ट” अब भ्रष्टाचार, पक्षपात और नियम उल्लंघन की भेंट चढ़ता दिख रहा है।


📢 जनता पूछ रही है — जिम्मेदार कौन?

सवाल यह उठता है कि —

जब नियम स्पष्ट हैं, तो उद्घाटन में मनमानी क्यों?

युवाओं के प्रशिक्षण में पारदर्शिता कहाँ है?

62 लाख की राशि का उपयोग सही दिशा में हो रहा है या फिर “कागज़ी प्रशिक्षण” का खेल खेला जा रहा है?


💬 स्थानीय नागरिकों की प्रतिक्रिया

स्थानीय नागरिकों ने नाराजगी जताते हुए कहा —

“युवाओं को रोजगार देने के नाम पर कुछ लोग अपनी जेबें भर रहे हैं। योजनाएं नेताओं के प्रचार का मंच बन गई हैं, जबकि गरीब बच्चे आज भी नौकरी के लिए दर-दर भटक रहे हैं।”


🔚 निष्कर्ष (Conclusion):

कौशल विकास मिशन जैसी महत्वाकांक्षी योजनाएं तभी सफल होंगी जब ईमानदारी से ज़मीन पर लागू की जाएं।
सरकार को चाहिए कि ऐसे मामलों की जांच कर जिम्मेदारों पर कठोर कार्रवाई करे।
क्योंकि —

“जब योजनाओं में राजनीति घुस जाती है, तो विकास पीछे छूट जाता है।”

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