गांव की सियासत अब डेटा पर होगी तय, जनता बनी अपनी सरकार की चौकीदार”

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प्रदेश में त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में अब करीब तीन माह का ही समय बचा है। गांव की नई सरकार चुनने के लिए हर गांव में सियासी कड़ियां पिरोई जा रही हैं।

एक शेर से खबर की शुरुआत करते हैं।
“सियासत में जो सच बोले वही गुनहगार होता है,
यहाँ झूठ बोलने वाला ही सरकार होता है।” आइये खबर को विस्तार देते है।

आमतौर पर पंचायतों के चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद शुरू होते थे और गांवों के गलियारों और खेत खलिहानों में आपसी बतकही में ही चुनाव पूरे हो जाते थे। अब ऐसा नहीं है, पंचायत चुनाव के आयाम भी अब अब बदल रहे हैं। अब पंचायत चुनाव के पैंतरों पर सूबे में भी सियासी समीकरण बनाए जाने लगे हैं। यही वजह है कि अब लखनऊ से पंचायतों की चुनावी हलचल डिजिटल प्लेटफार्म पर शुरू करवा दी गई है। यही वजह है पंचायत कि सियासी चौपालें अब आपसी मनभेद और मतभेद से इतर डिजिटल पर लगने लगी हैं।

चुनाव आयोग की तैयारी पूरी, सियासत की बिसात बिछी

चुनाव आयोग को पंचायत चुनाव अगले वर्ष 2026 में 25 मई से पहले करवाने हैं। फरवरी-मार्च में आचार संहिता लागू करने की योजना बनाई जा रही है। प्रशासनिक स्तर पर भी यही प्रयास है कि पंचायत चुनाव समय से सम्पन्न करवा लिए जाएं।

सूत्रों के मुताबिक, पंचायत चुनाव की अधिसूचना फरवरी-मार्च में जारी हो सकती है और 25 मई 2026 से पहले मतदान कराना अनिवार्य होगा। प्रशासनिक स्तर पर तैयारियां जोरों पर हैं — और इस बार फोकस पारदर्शिता पर है।

लेकिन यह चुनाव सिर्फ ग्राम प्रधान का नहीं, बल्कि राजनीतिक दलों का भी “टेस्ट रन” बन गया है। विधानसभा चुनाव 2027 से पहले यह पंचायत चुनाव दलों के लिए “ग्राउंड रिपोर्ट” साबित होगा।

🧭 भाजपा और सपा में डिजिटल जंग

सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी — दोनों ने अपने पंचायती मोर्चे को डिजिटल होमवर्क दे दिया है। गांव-गांव में पार्टी से जुड़े कार्यकर्ताओं को निर्देश दिए गए हैं कि “ई-ग्राम स्वराज” पर पंचायत की रिपोर्ट खंगालो, खर्च का हिसाब देखो, और जनता से संवाद बढ़ाओ।

अब हर दल चाहता है कि गांव का प्रधान “डिजिटली जागरूक” हो, क्योंकि डिजिटल पारदर्शिता ही जनता का भरोसा जीतने का नया हथियार बन गई है।

इन चुनावों में ग्राम पंचायत सदस्यों के साथ ग्राम प्रधान, क्षेत्र पंचायत सदस्य के साथ ही राजनीतिक दलों के करीब माने जाने वाले जिला पंचायत सदस्यों को चुना जाना है। यह त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव इसलिए भी बहुत अहम है, क्योंकि वर्ष 2027 में उत्तर प्रदेश विधानसभा का चुनाव है।
राजनीतिक दलों के एडवांस प्लान में पंचायत चुनाव सबसे ऊपर
ऐसे में प्रदेश स्तरीय राजनीतिक दलों के एडवांस प्लान में यह पंचायत चुनाव सबसे ऊपर है। सियासी दलों ने अपनी योजना के तहत पंचायत के अलंबरदारों की तवज्जो फिलहाल बढ़ा दी है। सत्तापक्ष भारतीय जनता पार्टी और प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के अलंबरदारों को डिजिटली जागरूक होने का संदेश पहुंच गया है। अलंबरदारों को होमवर्क भी दिया जा रहा है, जिसमें अपनी पंचायत के दावेदारों पर अध्ययन करना शामिल है। यही नहीं, कद्दावर नेताओं के संपर्क में पंचायत के प्रतिनिधियों के कार्यकाल के अध्ययन की भी रिपोर्ट बनाई जा रही है। पंचायत के बजट का लेखाजोखा डिजिटल सिस्टम से ई- ग्राम स्वराज पर दर्ज होता रहता है। एक क्लिक पर किसी भी ग्राम पंचायत के आय-व्यय का विवरण कहीं भी कभी कोई देख सकता।
डिजिटल प्लेटफार्म से हर नागरिक मुखिया
डिजिटलीकरण की यह पहल पंचायती राज विभाग ने गत वित्तीय वर्ष 2023-24 से करके सभी को मानो डिजिटल हथियार दे दिया हो। अब पंचायत चुनाव में यह डिजिटल हथियार खूब रंग लाने वाला है। गांव के हर नागरिक को डिजिटल प्लेटफार्म ने मुखिया बना दिया है। अब अपने प्रतिनिधि से जागरूक नागरिक बेधड़क होकर अपने गांव को सरकार से मिले धन को कहां और कैसे और क्यों खर्च किया यह पूछ रहे हैं।
बढ़ती जा रही शिकायतों की फेहरिस्त
अब आमजन की जवाबदेही की स्थिति प्रदेश की 57,665 ग्राम पंचायतों के जनप्रतिनिधियों के सामने विकट हो गई है। अब हर दिन शिकायतों की फेहरिस्त बढ़ती जा रही है। विभागीय अफसर भी हतप्रभ हैं कि अचानक इस वर्ष शिकायतों में बाढ़ क्यों आ गई है। शिकायतों पर जांच भी करवाई जा रही है।

एक शेर हैं,
“जहाँ सच्चाई बिकती हो, वहाँ इंसाफ़ मर जाता है,
जब ठेकेदार हुक्म चलाए, तो सिस्टम डर जाता है।”

कनक्लूजन — गांव बदल रहा है, सियासत संभल जाए!

पंचायत चुनाव अब सिर्फ स्थानीय सत्ता का नहीं, डिजिटल जवाबदेही का संग्राम बन चुका है।
जहां पहले वादे हवा में उड़ जाते थे, अब हर काम का डिजिटल सबूत जनता की मुट्ठी में है।
नेताओं और प्रधानों के लिए यह “डिजिटल युग का इम्तिहान” है —
जिसमें न भाषण चलेगा, न बहाना, सिर्फ डेटा बोलेगा।

यह चुनाव बताएगा कि “डिजिटल इंडिया” की जड़ें गांव तक पहुंचीं या नहीं।
अब ईमानदारी की परख सिर्फ बयानों से नहीं, ई-ग्राम के डेटा से होगी।
यही असली “डिजिटल क्रांति” है — जहां गांव की जनता खुद अपनी सरकार की चौकीदार बन गई है। एक शेर से खबर का समापन करते हैं

. “आवाज़ उठाओ तो कहते हैं बाग़ी हो गए,
चुप रहो तो ज़ुल्म करने वाले राज़ी हो गए।” बहुत बहुत धन्यवाद दर्शकों।

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डिजिटल पहल से पंचायतों में खलबली—ई-ग्राम स्वराज पर जनता मांग रही है हिसाब!”

पूरा हिसाब देखे रिपोर्ट में-

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