संजय सिंह की यात्रा यूपी की बदलती राजनीतिक हवा को टटोलने का एक प्रयास?
सुलतानपुर/उत्तर प्रदेश।
‘सरजू से गंगा तक’ आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह की यात्रा केवल राजनीतिक अभियान नहीं, बल्कि उत्तर भारत की बदलती राजनीतिक हवा को टटोलने का एक प्रयास भी मानी जा रही है। इस यात्रा की गूंज सिर्फ लोगों तक नहीं, बल्कि विपक्षी दलों और सत्ता पक्ष के शीर्ष नेताओं तक पहुंच चुकी है।
हर दल इसे अपने-अपने नज़रिए से देख रहा है, और कारण भी साफ है—संजय सिंह की शैली आक्रामक है, जमीन से जुड़ी है और भीड़ खींचने की क्षमता रखती है।
**🔵 भारतीय जनता पार्टी (BJP):
“सीधी चुनौती नहीं, लेकिन जमीन पर पैठ बढ़ाने की कोशिश”**
भाजपा इस यात्रा को सीधे चुनावी खतरे के रूप में नहीं देख रही, लेकिन इसे नजरअंदाज भी नहीं कर रही।
मुख्य कारण—
संजय सिंह भ्रष्टाचार, किसान, बेरोज़गारी और स्थानीय समस्याओं जैसे जमीन से जुड़े मुद्दों पर बोलते हैं।
उनकी सभाओं में भीड़ जुटती है, जिसे भाजपा विपक्षी एकजुटता का शुरुआती संकेत मान रही है।
भाजपा को ये भी पता है कि संजय सिंह की जनभाषा, आक्रामकता और मीडिया में पकड़ लोकसभा चुनाव के दौरान नैरेटिव सेट करने की क्षमता रखते हैं।
भाजपा सूत्रों के अनुसार, वे इस यात्रा को “पॉलिटिकल विजिबिलिटी बढ़ाने का प्रयास” मानते हैं, जो फिलहाल सीधा खतरा नहीं परंतु भविष्य में गठबंधन राजनीति को असर कर सकता है।
**🔴 समाजवादी पार्टी (SP):
“बैकडोर तालमेल की उम्मीद, लेकिन सतर्कता भी”**
सपा संजय सिंह की इस यात्रा को सकारात्मक रूप में देख रही है क्योंकि—
केंद्र और भाजपा के खिलाफ साझा राजनीतिक मंच बने तो उनका फायदा है।
AAP उत्तर प्रदेश की राजनीति में धीरे-धीरे जगह बनाने की कोशिश कर रही है, जो भविष्य में विपक्ष को मजबूत कर सकती है।
लेकिन SP का एक दूसरा डर भी है—
दलित, युवा और शहरी वोटरों पर AAP की नज़र SP के वोटबैंक को भी खिसका सकती है।
इसलिए SP समर्थन में है, लेकिन दूरी भी बनाए हुए है।
**🟡 कांग्रेस:
“विपक्ष की रैलियों को मजबूती, लेकिन नेतृत्व का स्पेस छोटा होने का खतरा”**
कांग्रेस इस यात्रा को दो तरह से देख रही है—
फायदा:
संजय सिंह का आक्रामक स्वर विपक्ष की आवाज़ को बड़ी करता है।
उनकी यात्रा भाजपा विरोधी माहौल में कैडर मोटिवेशन भी बढ़ाती है।
खतरा:
विपक्ष के स्पेस में AAP की एंट्री कांग्रेस की साइलेंट पॉलिटिक्स को कमजोर कर सकती है।
2027 और लोकसभा चुनाव में सीट शेयरिंग कठिन हो सकती है।
कुल मिलाकर, कांग्रेस इसे “विपक्ष की मजबूती” भी मानती है और “प्रतिस्पर्धा का बढ़ना” भी।
**🟣 बसपा (BSP):
“चुपचाप, लेकिन बहुत बारीकी से देख रही है”**
बसपा इस यात्रा पर खुलकर प्रतिक्रिया नहीं देती, लेकिन अंदरखाने में वे दो कारणों से इसे ध्यान से देख रही हैं—
पूर्वांचल व अवध की सीटों में AAP धीरे-धीरे दलित + पिछड़ा + शहरी गरीब वोटरों को आकर्षित कर सकती है।
संजय सिंह की राजनीतिक शैली हर वर्ग को जोड़ने वाली है, जो बसपा की पारंपरिक रणनीति से मेल खाती है।
बसपा इसे सीधी चुनौती तो नहीं, पर संभावित खतरे के रूप में जरूर देख रही है।
निष्कर्ष:
संजय सिंह की यात्रा सिर्फ जमीनी संवाद नहीं, विपक्षी राजनीति में नई ऊर्जा**
संजय सिंह की “सरजू से गंगा तक” यात्रा—
विपक्ष को एकजुट करती है,
भाजपा को सतर्क करती है,
SP, कांग्रेस और BSP को रणनीतिक रूप से सोचने पर मजबूर करती है,
और आम आदमी पार्टी को उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ बढ़ाने का मौका देती है।
इसलिए यह यात्रा एक नेता का अभियान नहीं, बल्कि UP की राजनीतिक मिट्टी में होने वाले बड़े बदलाव के संकेत भी हो सकती है।
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