“112 पर कॉल… और टूट गया भरोसा!” जन रक्षक बना भक्षक, मनीष की पुकार
“जब जन रक्षक ही बन जाए भक्षक — सुलतानपुर के मनीष की कहानी, जो सिस्टम के सन्नाटे में चीख बन गई!”
✍️ विशेष रिपोर्ट | KD NEWS डिजिटल
सुलतानपुर के कलेक्ट्रेट गेट पर गुरुवार सुबह एक युवक “जन रक्षक बना भक्षक” का पोस्टर थामे खड़ा था।
धूप में झुलसता चेहरा, आंखों में आंसू और होंठों पर सन्नाटा — लेकिन उस सन्नाटे के भीतर एक तूफान था।
नाम था — मनीष, पिता स्वर्गीय रामदीन, ग्राम पंचायत बरवारीपुर (कटघरा मुतरवाही), थाना कादीपुर।
उसकी तस्वीर सोशल मीडिया पर आते ही शहर में हलचल मच गई।
लोग पूछने लगे — क्या सच में अब इंसाफ मांगना भी अपराध हो गया है?
🧍♂️ “पुलिस से उम्मीद थी सुरक्षा की, मिली धमकी और अपमान”
मनीष का दर्द उतना ही गहरा था जितनी आवाज़ उसकी कांप रही थी।
उसने बताया कि उसके बड़े पापा भगवानदीन ने उसकी ज़मीन में लगे सागौन के पेड़ काट डाले। उसने न्याय की आस में 112 नंबर पर कॉल किया।
“पुलिस आई,” — मनीष कहता है, “लेकिन शिकायत सुनने के बजाय मुझे ही धमकाने लगी। मेरे मोबाइल को तोड़ दिया और थाने बुला लिया।”
यह वही पल था जब एक नागरिक का विश्वास उस सिस्टम से टूट गया, जिसे वो अपना रक्षक समझता था।
⚖️ “सुनवाई की जगह सन्नाटा मिला”
पीड़ित युवक ने पुलिस अधीक्षक को पत्र देकर न्याय की गुहार लगाई।
पर आरोप है कि वहां भी उसे नज़रअंदाज़ कर भगा दिया गया।
हारकर, थककर, टूटकर — वह सीधे कलेक्ट्रेट पहुंचा।
वहां खड़ा होकर बोला —
“अब मैं बस ये चाहता हूं कि कोई तो सुने — क्योंकि कानून अगर मरा नहीं है, तो आवाज़ उठाने वाले को अपराधी मत बनाइए।”
📢 एक व्यक्ति का प्रदर्शन नहीं, व्यवस्था पर सवाल है
मनीष का यह छोटा सा प्रदर्शन सुलतानपुर की उस व्यवस्था पर बड़ा सवाल है —
जहां जन रक्षक और जन भक्षक की रेखा धुंधली पड़ गई है।
जहां शिकायतकर्ता ही अपराधी बना दिया जाता है, और
जहां न्याय की तलाश में निकला इंसान “प्रदर्शनकारी” कहलाने लगता है।
💭 सवाल उठता है…
क्या आम नागरिक का 112 नंबर पर भरोसा अब डर में बदल गया है?
क्या किसी गरीब की जमीन की शिकायत दर्ज कराने का मतलब है कि उसे चुप करा दिया जाएगा?
और सबसे बड़ा सवाल — जब सिस्टम ही सुनने से इनकार कर दे, तो इंसाफ की आवाज़ किस दरवाजे पर जाएगी?
🕊️ निष्कर्ष:
मनीष की यह लड़ाई किसी एक परिवार की नहीं — यह हर उस नागरिक की लड़ाई है
जो सत्ता के साए में भी न्याय की धूप ढूंढ रहा है।
उसके हाथ का वह पोस्टर —
“जन रक्षक बना भक्षक” —
सिर्फ एक नारा नहीं था, बल्कि
हमारे लोकतंत्र के मौन होते आत्मसम्मान की पुकार थी।
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