रीलबाज पुलिसकर्मियों पर योगी का एक्शन, संवेदनशील स्थलों में तैनाती पर लगी रोक।
“योगी का अनुशासन मंत्र: वर्दी में दिखावा नहीं, जिम्मेदारी का असली चेहरा जरूरी”
रीलबाज पुलिसकर्मियों पर योगी का एक्शन, संवेदनशील स्थलों में तैनाती पर लगी रोक।
लेख:
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हालिया बयान ने पूरे प्रशासनिक तंत्र और पुलिस विभाग में गूंज पैदा कर दी है। उन्होंने उच्चस्तरीय बैठक में साफ कहा — “वर्दी शक्ति का नहीं, अनुशासन और सेवा का प्रतीक है।”
यह एक साधारण वाक्य नहीं, बल्कि उस प्रदर्शनप्रियता के चलन पर सर्जिकल स्ट्राइक है, जो सरकारी सेवा में तेजी से जड़ें जमा रही है।
दरअसल, पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर पुलिसकर्मियों और सरकारी कर्मचारियों के रील, डांस वीडियो, और ड्यूटी पर कैमरा फ्रेंडली पोज़ वायरल होते रहे हैं। कुछ को लोकप्रियता मिली, तो कुछ को सस्पेंशन।
अब सवाल उठ रहा है — क्या रील बनाना गलत है? या गलत है ड्यूटी के वक्त जिम्मेदारी को तमाशा बना देना?
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संदेश स्पष्ट है — जनता की सेवा ‘कंटेंट’ नहीं, ‘कर्तव्य’ है।
जब जनता पुलिस या अफसर को देखती है, तो उसमें भरोसा, अनुशासन और सुरक्षा की उम्मीद करती है — न कि फ़िल्टर वाले कैमरे की चमक।
वर्दी अगर कैमरे की नज़र में है, तो जनता की नज़र से उतर जाती है।
और यही बात योगी ने सख्ती से कही — ड्यूटी पर दिखावा नहीं, संवेदना झलकनी चाहिए।
त्योहारों के दौरान भीड़ प्रबंधन, सुरक्षा और स्वच्छता पर मुख्यमंत्री का विशेष फोकस यह दर्शाता है कि सरकार प्रशासन को “जवाबदेह और जनसहज” बनाना चाहती है। उनका यह कदम न केवल अनुशासन को पुनर्स्थापित करने की दिशा में है, बल्कि ड्यूटी को सेल्फी के बजाय सेवा का माध्यम बनाने का आह्वान भी है।
लोगों के बीच चर्चा गरम है —
कई लोग इसे “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” के खिलाफ बता रहे हैं, तो कई इसे “सेवा भावना की रक्षा” के पक्ष में देख रहे हैं।
लेकिन सच्चाई यह है कि वर्दी के साथ जिम्मेदारी का भी यूनिफॉर्म आता है। जब रील बनाते हुए कोई ड्यूटी कमजोर होती है, तो उसकी गूंज सिर्फ सोशल मीडिया तक नहीं, जनता के विश्वास तक पहुंचती है।
क्या रील बनाना गलत है?
रील बनाना अपने आप में गलत नहीं है।
सोशल मीडिया आज संवाद और प्रेरणा का माध्यम बन चुका है। अगर कोई पुलिसकर्मी या अधिकारी ऑफ ड्यूटी समय में, मर्यादा और गरिमा बनाए रखते हुए सकारात्मक, जागरूकता बढ़ाने वाले या प्रेरणादायक वीडियो बनाता है — तो यह गलत नहीं कहा जा सकता।
बल्कि इससे जनता के बीच पुलिस और प्रशासन के प्रति सकारात्मक छवि भी बनती है।
🚫 लेकिन ड्यूटी के वक्त रील बनाना क्यों गलत है?
समस्या तब शुरू होती है जब ड्यूटी के दौरान, वर्दी में जिम्मेदारी निभाते हुए, कैमरे के लिए पोज़ दिए जाने लगते हैं।
यह तीन स्तर पर गलत है —
- कर्तव्य की मर्यादा का उल्लंघन:
ड्यूटी का वक्त जनता की सेवा का समय है, न कि प्रचार का।
जब किसी आपात स्थिति, भीड़ नियंत्रण या सरकारी दायित्व के समय कर्मचारी कैमरे में व्यस्त होता है, तो यह सीधी लापरवाही मानी जाती है। - वर्दी की गरिमा पर प्रभाव:
वर्दी जनता में अनुशासन और सुरक्षा का प्रतीक है।
जब वही वर्दी मनोरंजन या वायरल कंटेंट का हिस्सा बन जाती है, तो उसका सम्मान कम होता है। - जनविश्वास की हानि:
जनता उम्मीद करती है कि पुलिस उसकी सुरक्षा में लगी है, न कि सोशल मीडिया के लिए “रील शूट” कर रही है।
यह भरोसे की नींव को कमजोर करता है।
⚖️ निष्पक्ष राय:
✅ रील बनाना ठीक है, अगर वह जागरूकता, सकारात्मक संदेश या प्रेरणा के लिए हो — और ड्यूटी के बाद, निजी समय में बनाया जाए।
❌ लेकिन ड्यूटी के दौरान, वर्दी में, जिम्मेदारी निभाते वक्त रील बनाना गैर-जिम्मेदाराना और अनुशासनहीनता की श्रेणी में आता है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का संदेश इसी संतुलन को स्थापित करने की कोशिश है —
“रील नहीं, रियल सर्विस जरूरी है।”
जनता को सुरक्षा, संवेदना और तत्परता चाहिए — न कि ट्रेंडिंग साउंड पर डांस करती वर्दी।
💥 दमदार निष्कर्ष:
योगी का अनुशासन मंत्र साफ है —
“वर्दी शोहरत के लिए नहीं, सेवा के लिए पहनी जाती है।”
ड्यूटी के दौरान कैमरे की ओर नहीं, जनता की ओर देखना ही असली पेशेवर गर्व है।
जब वर्दी की मर्यादा बनी रहेगी, तभी सम्मान भी कायम रहेगा —
और यही “रील नहीं, जिम्मेदारी” का सच्चा अर्थ है।
योगी आदित्यनाथ का यह अनुशासन मंत्र सिर्फ एक चेतावनी नहीं, बल्कि शासन की आत्मा को फिर से जगाने का प्रयास है।
ड्यूटी पर कैमरा नहीं, चरित्र बोले।
वर्दी का रुतबा उसकी ईमानदारी में है, उसकी रील में नहीं।
जब सेवा भावना कैमरे की जगह दिल में बस जाएगी, तभी शासन भरोसे का पर्याय बनेगा — और तभी जनता कहेगी, “यह योगी का अनुशासन युग है।” बहुत बहुत धन्यबाद दर्शको।
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