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बाबा भवरेश्वर मंदिर धाम का नाम भीमेश्वर से भवरेश्वर कैसे पड़ा

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तीनों जनपदों के बार्डर पर स्थित बाबा भवरेश्वर धाम का प्राचीन मंदिर भीमेश्वर से भवरेश्वर कैसे पड़ा

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वाँइस  आँफ  निगोहां

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उत्तर प्रदेश रायबरेली के सुदौली में बने इस प्राचीन बाबा भवरेश्वर मंदिर धाम में जहां पर लाखों की संख्या में लोग आते हैं और भगवान भोलेनाथ जी की प्राचीन मुर्ति शिवलिंग की पूजा करते हैं, यह प्राचीन बाबा भोले नाथ जी का मंदिर तीनों जिलों के बॉर्डर पर उन्नाव, रायबरेली, लखनऊ की सीमावर्ती पर बंछरावा थाना क्षेत्र के सुदौली में उपस्थित है यहां पर पूरे वर्ष हर सोमवार को एक विशाल और भव्य मेला लगता है, और शिवरात्रि के समय तो एक महीने से अधिक का मेला होता हैं । यह विशाल मंदिर सई नदी के तट पर स्थित है।
पौराणिक मान्यता के अनुसार —
पूर्वजों की जानकारी के मुताबिक
जिस समय पांडव अज्ञातवास का समय व्यतीत कर रहे थे, उस समय उन्होंने जहां जहां भी अपना रुकने का स्थान बनाया, उस जगह पर उन्होंने शिव जी की मूर्ति की स्थापना की क्योंकि कुन्ती बगैर शिव की पूजा किये बिना जल भी ग्रहण नही करती थी। उस समय पांडव इस क्षेत्र में सई नदी के किनारे विचरण करते हुये पाण्डवों ने यहा डेरा डाला। कुन्ती की नित्य पूजा को सम्पन्न कराने के लिए महाबली भीम अपनी गदा प्रहार से विशाल काय पाषाण खण्ड तोड़ कर लाते थे और उसका अगला सिरा गदा प्रहार से ही शिव लिंग के आकार का निर्मित कर जमीन के अन्दर भयानक वेग से गाड़ देते थे। तत्पश्चात मंत्रोंच्चार के द्वारा मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने के बाद कुन्ती उसका पूजन -अर्चना करती थी। पूर्वजों के अनुसार ऐसे ही इस शिवलिंग की स्थापना भीम के द्वारा इस क्षेत्र में की गई थी । उस समय इनका नाम भीम के नाम पर भीमेश्वर विख्यात हुआ। जैसे जैसे समयानुसार समय बीतता गया परिवर्तन होता रहा । मंदिर का महत्व हमारे पूर्वजों के द्वारा–मंदिर के महत्व के विषय में हमारे पूर्वजों द्वारा बताया जाता है कि यहां पर पहले बहुत ही घने जंगल हुआ करते थे इस जंगल में राजा शिकार करने के लिए आते थे । धीरे धीरे समय बदला कुछ वर्षों के बाद जहां गांव से लोग जानवर चराने के लिए आते थे। तभी वहां एक गाय माता जहां एक खास स्थान पर आने से उसका सारा दूध स्वत: निकलने लगता था। चरवाहे जब शाम को दूध दुहते थे तो गाय दूध नहीं देती थी । इस पर चरवाहों ने खोजबीन चालू की तो पाया कि गाय अपना सारा दूध इस शिवलिंग पर गिरा देती थी, तब उन्हें शिवजी की शिवलिंग होने की जानकारी हुई है, और उन्होंने पूजा -अर्चना शुरू कर दी और यह बात बहुत दूर दूर तक आग की तरह फैल गई, और वहां पर इस शिवलिंग के दर्शन करने के लिए लोगों का आना जाना शुरू हो गया ।धीरे धीरे यह जानकारी औरंगजेब को हुई।
औरंगजेब का आक्रमण उस समय हमारे देश में मुग़ल शाशक औरंगजेब का शासन था यह बात उसके कानों तक पहुंची तो उसने इस शिवलिंग को खुदवाने का निर्णय लिया। वह अपनी सेना के साथ रायबरेली के बंछरावा में स्थित सुदौली रियासत आ धमका और मजदूरों के द्वारा उसने मूर्ति की खुदाई करवाना शुरू कर दिया।इलाके में हाहाकार मच गया मुगल शासक औरंगजेब उस समय मंदिरों को तोड़कर उनकी शक्तियां देखना चाहता था, मजदूर शिवलिंग की खुदाई करते रहें लेकिन शिवलिंग का कोई अता पता नहीं चला जितना वह शिवलिंग को नीचे खोदते थे, उतना ही शिवलिंग और बढ़ जाता था, इसके बाद भी मुगलिया सल्तनत के क्रूर शासक को होश नही आया और उसने शिव लिंग में जंजीरे बंधवाकर हाथियों से मूर्ति खिचवाने का आदेश दिया। लेकिन वह उसमें भी सफल नहीं हुआ तो उसने शिवलिंग को तोड़ने का आदेश दिया लेकिन जैसे ही मजदूरों ने उस पर हथौड़े का प्रहार किया उससे हजारों की संख्या मैं भंवरे निकले और औरंगजेब की सेना पर टूट पड़े देखते ही देखते सारी सेना वहां से भाग खड़ी हुई और फिर मुड़ कर भी सुदौली की रियासत की तरफ एक बार भी नहीं देखा तभी से भीमेश्वर का नाम बदलकर पूर्वजों ने भवरेश्वर रख दिया ।आगे चलकर सुदौली के राजा रामपाल की धर्म पत्नी ने अति प्राचीन मंदिर का जीर्णोद्वार करवाकर भव्य रुप दिया। आज बहुत ही विशाल आदि मूर्ति बाबा भवरेश्वर धाम के नाम से दूर-दूर तक प्रसिद्ध है ।
आज लाखों की संख्या में शिवजी के भक्तगण यहां आते हैं समीप स्थित सई नदी में स्नान कर परिक्रमा करते हुए भक्त बाबा भवरेश्वर मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं और अपनी मनोकामना पूरी करते हैं भक्तों का कहना है उनकी सभी मुरादें पूरी होती है। सावन के महीने में बड़ी संख्या में भक्तगण भोले को मनाने आते हैं।
यह स्थान तीन जनपद के बार्डर पर स्थित है उन्नाव, लखनऊ, रायबरेली। यहां पहुंचने के लिए लखनऊ से 45 किलोमीटर और रायबरेली से 50 किलोमीटर और उन्नाव से लगभग दूरी 60 से 70 किलोमीटर तक की तय करना पड़ती है ।
आप लोगो से विनम्र निवेदन है की आप भी एक बार भोले बाबा के दरबार जाये और भोले बाबा का आशीर्वाद प्राप्त करें दर्शन कर कृतार्थ हो।

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