यूपी/अमेठी-शिक्षा साहित्य एवं अर्थतंत्र के विशेष संदर्भ में दो द्विवसीय संगोष्ठी का आयोजन
यूपी/अमेठी-शिक्षा साहित्य एवं अर्थतंत्र के विशेष संदर्भ में दो द्विवसीय संगोष्ठी का आयोजन
चंदन दुबे की रिपोर्ट
रणवीर रणंजय स्नातकोत्तर महाविद्यालय,अमेठी के मालवीय सभागार में भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्,नई दिल्ली द्वारा प्रायोजित ’’समसामयिक विश्व में गाँधीजी के विचारों की प्रासंगिकता शिक्षा साहित्य एवं अर्थतन्त्र के विशेष सन्दर्भ में विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन का शुभारम्भ दीप प्रज्जवलन एवं सरस्वती वन्दना से हुआ।
आजाद भारत में गाँधीजी के नव प्रयोग अछूते रहे,आजादी मिलने तक का भाव आज विद्यमान नही है।गाँधीजी के विचार आज के समय में पहले से भी अधिक प्रासंगिक दिखते हैं।एक नही अनेक समस्याओं का समाधान सम्यक् है।उक्त विचार संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज के प्रो0 पी के साहू ने दिया।आपने बताया कि गाँधीजी के जीवन की सबसे बड़ी विशेषता उनके मानव समाज के कल्याण की है।उनका मानना था कि कोई भी योजना समाज के प्रथम और अन्तिम व्यक्ति को ध्यान में रखकर बनानी चाहिए।अन्याय के साथ कभी भी भेद-भाव और राजनीति नही करनी चाहिए।उनका मानना था कि भावात्मकता,चन्तन और कर्म तीनों में समन्वय स्थापित होना चाहिए।आपने गाँधी के आध्यात्मिक चिन्तन पर विशेष बल दिया।गाँधीजी का मानना था कि किसी भी समस्या का समाधान भगवत गीता में निहित है।विशिष्ट अतिथि मौलाना मोइनुद्दीन चिश्ती उर्दू अरबी फारसी विश्वविद्यालय लखनऊ के प्रो0 फकरे आलम ने बताया कि गाँधीजी किसी भी भाषा के विरोधी नही थे।वे हमेशा हिन्दी और उर्दू के हिमायती रहे।उनका मानना था कि व्यक्ति और देश का विकास करना है तो अधिक से अधिक भाषाओं का ज्ञान होना आवश्यक है।हमको धर्म और भाषा पर लड़ने के बजाय देश के विकास पर ध्यान देना चाहिए। गाँधीजी का जीवन यह दर्शाता है कि व्यक्ति की सोच आसमान छूने की होनी चाहिए लेकिन उसके पाँव हमेशा जमीन पर होने चाहिए।धर्म और राजनीति एक दूसरे के पूरक हैं।किसी भी अर्थव्यवस्था में समानता की नीति के गाँधीजी प्रबल समर्थक थे।स्वागत करते हुए महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ0 त्रिवेणी सिंह ने गाँधीजी के प्रसिद्ध वाक्य ’’जिस प्रकार मैं किसी स्थूल पदार्थ को अपने सामने देखता हूँ उसी प्रकार मुझे जगत के मूल में राम के दर्शन होते हैं।अन्धकार में प्रकाश की और मृत्यु में जीवन की अक्षय सत्ता प्रतिष्ठित है’’ पर विस्तार से प्रकाश डाला।
संगोष्ठी में डॉ0 नम्रता साहू,प्रो0 एस.एच. नकवी,डॉ0 राधेश्याम तिवारी,डॉ0 सुभाष सिंह,डॉ0 दयानन्द सिंह, डॉ0 दिनेश बहादुर सिंह सहित अनेकों शोधार्थियों ने अपने शोध-पत्र प्रस्तुत किये।संगोष्ठी संयोजक डॉ0 एम.पी. त्रिपाठी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त करते हुए बताया कि इस संगोष्ठी में कुल 103 शोधपत्र प्रस्तुत किये गये।
संगोष्ठी में डॉ0 रीना त्रिवेदी,डॉ0 सुधीर सिंह,डॉ0 उमेश सिंह,डॉ0 धर्मेन्द्र वैश्य,डॉ0 देवेन्द्र मिश्र,डॉ0 प्रज्ञा सिंह,डॉ0 ज्ञानेन्द्र प्रताप सिंह,डॉ0 अरविन्द सिंह,डॉ0 पवन कुमार पाण्डेय,डॉ0 अजय कुमार सिंह सहित अनेक लोग उपस्थित रहे।