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पेड़ों पर पड़ने वाले सावन के झूले में कजरी गीत हो रही है गायब, जान डालती अंशिका उपाध्याय का कजरी गीत शोशल मीडिया पर हुआ वायरल।

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आज की आधुनिकता के दौर में गायब हो रही कजरी गीत में जान डालती अंशिका उपाध्याय का गीत शोशल मीडिया पर हुआ वायरल।

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आधुनिकता के दौर में गुम होती कजरी गीत में जान डालती अंशिका उपाध्याय का गीत शोशल मीडिया पर हुआ वायरल।

श्रद्धा उमंग और खुमारी के संगम से शुरू होने वाले सावन के महीने की पहचान ग्रामीण महिलाओं द्वारा गाये जाने वाले कजरी के समूह गान से होती रही है। परंतु आज आधुनिकता के इस दौर में ग्रामीण पृष्ठभूमि में भी कजरी के बोल और पेड़ों पर पड़ने वाले सावन के झूले गायब हो गए हैं।
आधुनिक दौर में विकास की अंधी दौड़ के कारण जीवन शैली में आने वाले बदलाव में अब टीवी पर बजने वाले गीतों के बोल भले सुनाई देते हैं लेकिन सदाबहार लोकगीतों की गूंज और पेड़ों पर पड़े सावन के झूले ग्रामीण परिवेश से पूरी तरह गायब हो गए। ये वो परंपराएं थीं जो ग्रामीणों को न केवल एकता के सूत्र में पिरोये रखती थीं बल्कि लोगों में एक दुसरे के सुख दुख को समझने और सहयोग करने का भाव भी पैदा करती थी।इसी कड़ी में एक कजरी गीत अंशिका उपाध्याय का शोशल मीडिया के विभिन्न प्लेटफार्म पर वायरल हो रहा हैं जो लोगो द्वारा खूब पसंद किया जा रहा है आप भी सुने।

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