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हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बाबा करीम शाह की मजार पर आज से मेला शुरू।

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आज से लगेगा तीस दिवसीय धूनी का मेला

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हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बाबा करीम शाह की मजार

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सुल्तानपुर- वर्षो से हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बना बाबा करीम शाह(धूनी)का मेला प्रति वर्ष वसंत पंचमी से शुरू होता है।बाबा करीम शाह की मजार पर प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु(जायरीन) मत्था टेक कर व सिन्नी (प्रसाद) चढ़ाकर मुरादे मांगते है।मान्यता है कि बाबा की मजार पर फातिया यानी पूजा अर्चना व चादर चढ़ाने से सभी की मनोकामना पूर्ण होती हैं।मेले में आयोजक टीम जहाँ चाक चौबंद ब्यवस्था दुरुस्त करने में लगी है,वही प्रशासन की ओर से मेले में भारी संख्या में पुलिस बल तैनात किया गया है।बल्दीराय तहसील मुख्यालय से लगभग आठ किमी दूर मुसाफिरखाना-देवरा मार्ग के भवानी शिवपुर गांव में बाबा करीम शाह की मजार है।मान्यता है कि लगभग 200 वर्ष पूर्व बाबा करीम शाह घूमते-घूमते भवानी शिव पुर गांव पहुचे।यह जगह बाबा को अच्छी लगी और गांव के पास बाग में अपनी कुटी बनाकर गरीब असहायों की मदद करने लगे।धीरे-धीरे बाबा के प्रति लोगो की श्रद्धा बढ़ती गयी और लोग बाबा के मुरीद होते गये।बाबा के निधन के बाद तिलोई के राजा ने बाबा की मजार बनवाईं।मेला परिसर में बाबा करीम शाह व बाबा अलाउदीन शाह की भी मजार है।मेले के पश्चिम ओर हनुमानजी का भब्य मंदिर बना है।वर्ष 1800 के आस-पास मजार पर बसन्त पंचमी के अवसर पर मेला लगने लगा है।बाबा के मजार के बगल कई वर्षों से धूनी सुलग रही हैं,जो आज भी सुलगती हुई देखी जा सकती है।इस लिए इस मेले को लोग धूनी का मेला भी कहते है।गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल है यह धूनी का मेला। कलकत्ता,लखनऊ, प्रतापगढ़,रुदौली,आजमगढ़, बाराबंकी,अमेठी,अम्बेडकरनगर,बनारस,कानपुर,मुम्बई व फिरोजाबाद से दुकाने इस मेला में सजती है।मेले में घुड़दौड़,भेड़, तीतर व मुर्गे की लड़ाई होती हैं।मेले में सर्कस,जादू,डांस पार्टी,मौत का कुआ,फर्नीचर की दुकान,झूला व बच्चों के लिए रेलगाड़ी बच्चों के लिए आकर्षण का केंद्र रहता है।थानाध्यक्ष बल्दीराय राम विशाल सुमन ने बताया कि मेले में सुरक्षा ब्यवस्था के लिए अस्थाई पुलिस चौकी भी कायम की गयी है।

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