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वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर विपक्षी पार्टियां में क्यों मची है खलबली,देखे पूरी विस्तृत रिपोर्ट।

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One Nation One Election:

देश में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर चर्चा तेज हो गई है. केंद्र सरकार ने शुक्रवार (1 सितंबर) को वन नेशन, वन इलेक्शन के लिए एक कमेटी गठित की है, जो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में काम करेगी. कमेटी देश में एक साथ चुनाव की संभावनाओं का पता लगाएगी. बताना जरूरी है भारत मे 1967 तक लोकसभा और विधानसभा का चुनाव एक साथ होता रहा है।

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आखिर क्या है वन नेशन वन इलेक्शन, विपक्षी पार्टियां में मची है क्यों खलबली,देखे क्या है नफा नुकसान, सिर्फ के.डी न्यूज़ यूपी के साथ।

अपडेट रिपोर्ट।

पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में कमेटी गठित कर दी है। इसके साथ ही कमेटी के सदस्यों के नामों की घोषणा भी कर दी है।कमेटी में कुल 8 लोग शामिल होंगे।इसमें अमित शाह, अधीर रंजन चौधरी, गुलाम नबी आज़ाद, एनके सिंह, सुभाष कश्यप, हरीश साल्वे और संजय कोठारी के साथ अन्य सदस्य भी होंगे।

गौरतलब हो कि कमेटी का गठन ऐसे समय में किया गया है, जब केंद्र ने 18 से-22 सितंबर के दौरान संसद का विशेष सत्र बुलाया है. इंडिया टुडे की खबर के मुताबिक केंद्र सरकार इस दौरान कई महत्वपूर्ण विधेयक पेश करने की तैयारी कर रही है, जिसमें वन नेशन वन इलेक्शन भी शामिल है. आज हम वन नेशन वन इलेक्शन के फायदे और नुकसान के बारे में जानने का प्रयास करेंगे।
‘एक देश, एक चुनाव’ का आइडिया देश में एक साथ चुनाव कराए जाने से है. इसका मतलब यह है कि पूरे भारत में लोकसभा चुनाव और सभी राज्यों में विधानसभा चुनाव एक साथ होंगे. दोनों चुनावों के लिए संभवतः वोटिंग भी साथ या फिर आस-पास होगी. वर्तमान में लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव सरकार 5 साल का कार्यकाल पूरा होने या फिर विभिन्न कारणों से विधायिका के भंग हो जाने पर अलग-अलग कराए जाते हैं।

कुछ लोगो का अब सवाल होना लाज़मी है कि बीजेपी के लिए क्यों खास है वन नेशन, वन इलेक्शन?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के दूसरे नेता कई मौकों पर देश में एक साथ चुनाव की चर्चा कर चुके हैं. 2014 में तो ये बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्र का हिस्सा भी रह चुका है. एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, बीजेपी के चुनावी घोषणा पत्र के पेज नंबर 14 में लिखा गया था, “बीजेपी अपराधियों को खत्म करने के लिए चुनाव सुधार शुरू करने के लिए प्रतिबद्ध है. बीजेपी अन्य दलों के साथ परामर्श के माध्यम से विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की पद्धति विकसित करने की कोशिश करेगी.” घोषणा पत्र के मुताबिक, इससे चुनाव खर्चों को कम करने के अलावा राज्य सरकारों के लिए स्थिरता सुनिश्चित होगी,ऐसा इनका मानना है।

अब सवाल है कि एक साथ चुनाव के क्या फ़ायदे हैं?

देश में एक साथ चुनाव कराए जाने के समर्थन में सबसे मजबूत तर्क अलग-अलग हैं,चुनावों में खर्च होने वाली भारी-भरकम राशि में कटौती करना है।
इंडिया टुडे ने अपनी रिपोर्ट्स में बताया है कि 2019 लोकसभा चुनाव में 60 हजार करोड़ रुपये खर्च हुए थे. इसमें चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों का खर्च और केंद्रीय चुनाव आयोग की तरफ से खर्च की गई रकम भी शामिल है।

एक साथ चुनाव के समर्थन में एक तर्क और दिया जाता है कि इससे प्रशासनिक व्यवस्था सुचारू होगी. चुनाव के दौरान अधिकारी चुनाव ड्यूटी में लगे होते हैं, इससे सामान्य प्रशासनिक काम प्रभावित होते हैं यह तो रहा फायदा।

अब इसने विधि आयोग क्या कहता है ,उन्होंने अनुमान जताया है कि मतदान बढ़ सकता है।

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पिछले कुछ सालों से देखा गया है कि हर साल कहीं न कहीं चुनाव होते रहते हैं. चुनाव के चलते इन राज्यों में आचार संहिता लागू कर दी जाती है, जिससे उस दौरान लोक कल्याण की नई योजनाओं पर प्रतिबंध लग जाता है. एक साथ चुनाव होने से केंद्र और राज्य की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता सुनिश्चित होगी.

विधि आयोग ने कहा है कि एक साथ चुनाव कराने से मतदान में वृद्धि होगी, क्योंकि वोटर्स के लिए एक बार में वोट देने के लिए निकलना ज्यादा सुविधाजनक होगा।

एक न्यूज रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि लगातार होने वाले चुनाव के चलते सरकार या सियासी पार्टियां हमेशा चुनावी मोड में रहती है। चुनाव को ध्यान में रखते हुए लोकलुभावन वादे किए जाते हैं, जिससे जरूरी योजनाओं का क्रियान्वयन ठप्प पड़ जाता है। लक्षित लोगों को ध्यान में रखते हुए किए वादे की होड़ में जरूरी सेवाएं लोगों तक नहीं पहुंच पातीं है।

भारत के विधि आयोग ने चुनावी कानूनों में सुधार पर अपनी 170वीं रिपोर्ट में इस विचार का समर्थन किया है कि हमें उस स्थिति में वापस जाना चाहिए जहां लोकसभा और सभी विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते हैं। विधि आयोग ने सुझाव दिया कि जिन विधानसभाओं का कार्यकाल लोकसभा चुनाव के छह महीने बाद समाप्त हो रहा है, उनके चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं। ऐसे चुनावों के नतीजे विधानसभा कार्यकाल के अंत में घोषित किए जा सकते हैं।

वन नेशन वन इलेक्शन के लिए चुनाव आयोग में भी चुनौतियां हैं

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर होने वाली कठिनाइयों से गुरेज नहीं किया जा सकता। चुनाव आयोग को लगता है कि एक साथ चुनाव कराने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम) और वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल जिसको (वी.वी.पी.एटी) कहा जाता है, इस मशीनों की बड़े पैमाने पर खरीद की आवश्यकता होगी। चुनाव आयोग का अनुमान है कि ईवीएम और वीवीपैट की खरीद के लिए 9284.15 करोड़ रुपये की आवश्यकता होगी। मशीनों को हर 15 साल में बदलने की भी आवश्यकता होगी जिस पर फिर से व्यय करना होगा। इसके अलावा, इन मशीनों के भंडारण से भंडारण लागत व रख रखाव में वृद्धि होगी।

अब सवाल है कि वन नेशन वन इलेक्शन के लिए क्या करना पड़ेगा?

लोकसभा और राज्यसभा चुनाव एक साथ कराए जाने के लिए संवैधानिक संशोधन करना पड़ेगा। साथ ही जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और अन्य संसदीय प्रक्रियाओं में भी संशोधन करना होगा।अब आइए जानते हैं, इसके लिए क्या बदलाव करने होंगे?

वन नेशन वन इलेक्शन बिल लाने के लिए 16 विधानसभाओं का समर्थन चाहिए होगा यानी पहले देश के 16 राज्यों की विधानसभा में इसके प्रस्ताव को पास कराना होगा.

बिल जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत ही लाया जा सकता है. उसमें बदलाव करना होगा.

संविधान के अनुच्छेद 83, 85, 172, 174 और 356 में 2 तिहाई बहुमत के साथ संशोधन करना होगा.

यह सब तो रहा फायदा नुकसान का मामला लेकिन अब क्षेत्रीय पार्टियों का एक साथ चुनाव को लेकर आशंका क्यों है? क्यों डर लगा हुआ है।आइये अब उसके बारे में जानते हैं।

क्षेत्रीय दलों का बड़ा डर यह है कि वे अपने स्थानीय मुद्दों को मजबूती से नहीं उठा पाएंगे क्योंकि राष्ट्रीय मुद्दे केंद्र में आ जाएंगे. इसके अलावा वे चुनावी खर्च और चुनावी रणनीति के मामले में भी राष्ट्रीय पार्टियों से मुकाबला नहीं कर पाएंगे।

इसमे इंडिया टुडे का सर्वे क्या कह रहा है। आई.डी.एफ.सी संस्थान के 2015 में किए गए एक सर्वे के हवाले से बताया है कि अगर एक साथ चुनाव होते हैं तो 77 प्रतिशत संभावना है कि मतदाता राज्य विधानसभा और लोकसभा में एक ही राजनीतिक दल या गठबंधन को चुनेगी।. वहीं, चुनाव छह महीने के अंतर पर होते हैं, तो केवल 61 प्रतिशत मतदाता एक पार्टी को ही चुनते हैं, यही कारण है कि सत्ता पक्ष से ज्यादा विपक्षी दलों में देश में वन नेशन, वन इलेक्शन को लेकर चर्चा तेज हो गई हैं।

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